July 25, 2022

कुछ तो बोलो चंद्रा !

तुम्हारी हंसी ने मानस में
हंसी बिखेर दी | मन न जाने
कौन से रंगीन ताने – बाने बुनने
में तल्लीन हो गया | कभी – कभी स्मृति
जाग उठती है और तुम्हारी थिरकती
मुस्कान अठखेलिया करती, दिल को
कचोटती हुई न जाने कहां पंख लगाए
उड़ जाती हैं तितलियों सी | तुम भी हो
तितलियों सी चंचला , रंगीन हो (तुम्हारा
रूप मोहक , स्वर मोहक और चितवन मोहक)
कल्पना की सहचरी मादक पलकों में बैठकर
न जाने कौन सी मादक भाषा में तुमने संदेश
सुनाया | आकुल व्याकुल प्राण पंख पसारे ढूंढ रहे
तुम्हे किन्तु तुम्हे पा न सके तुम्हारी छाया भी |
किस माया के आवरण में छिप कर आँख – मिचौली
खेल रही हों ? कुछ तो बोलो चंद्रा !

One Response

  1. Mridu says:

    Beautiful!!

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