July 22, 2022

मेरी पहली मुलाक़ात

मैं अपनी M.sc. करने के बाद P.sc. का Exam देने सागर गई थी दिसंबर 1982 में | जिस दिन मेरा आखिरी पेपर था उसी दिन परशु की मम्मी, बुआजी उनकी बेटिया शाम को मेरी बड़ी ताई के यहाँ मुझे देखने आई | मेरे दादाजी का घर सागर में हैं | मेरी बड़ी ताई जी की दोस्त थी इनकी बुआ जी | ताई ने इन्हे बताया की चंद्रा अभी Exam देने सागर आई हुई हैं | आप सभी आकर देख लों | मुझे इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था | पापाजी मुझे लेने Exam Center आये | रास्ते में पापाजी बोले कुछ आंटी आ रही हैं | घर पर अच्छे से तैयार हो जाना | मैं कुछ समझी नहीं | उनका आना मेरे तैयार होने का संबंध समझ नहीं पाई | पापाजी से मैंने कहाँ की मैं तैयार क्यों होऊं | क्योंकि शादी के नाम से मुझे गुस्सा आ जाता था की मुझे शादी नहीं करनी | पता नहीं डर लगता था | अपने घर को छोड़ना शायद मेरे लिए संभव नहीं था | अतः मैंने पापा को गुस्सा होते हुँए कहाँ की आपने उन्हें यहाँ क्यों बुलाया ? मुझे कोई तैयार नहीं होना | पर पापा बड़े प्यार से समझाते हुए बोले की कोई तुम्हारी शादी अभी थोड़ी कर रहें हैं | क्या अपने घर कोई आंटी वगैरह नहीं आती | उन्हें क्या मना कर देते | ठीक हैं तुम जैसी हो वैसी ही रहना | घर

आकर पता चला की वो लोग आ चुके हैं | मैं तैयार होकर उन लोगों से मिली | हम 4-5 घंटे साथ रहें | वे जब गई तारीफ करती गई की लड़की तो बड़ी सुंदर, प्यारी सी सुशील हैं | हमें तो भाई लड़की बहुत पसंद आई 1 जनवरी को मेरी मंझली मामीजी मुझे नानीजी के घर ले गई रहली | अपने नाना – नानी जी के यहाँ मुझे सदा से ही अच्छा लगता था | ये मेरी तमन्ना थी की पढ़ाई के बाद एक साल मैं बिल्कुल फ्री रहूँ और मजे करू | नाना के घर बड़े -बड़े खेत खलियान, बगीचा थे साथ ही सभी का ढेर सारा प्यार | बढ़िया चूल्हे का बना खाना रोज गरमा – गर्म दूध में भीगी ज्वार की रोटी (जो मेरी बड़ी मामी जी कटोरे में डालकर चूल्हे की मंदी आँच पर रख दिया करती ) जिसका स्वाद आज भी याद करती हूँ तो जैसे उसका रस जीभ पर आ गया हों | इन छुट्टिओं का पूरा आनंद ले रही थी | इसी वजह से मेरा रंग गुलाबी हो गया | उस समय हमारा घर सागर में बन रहा था | इसलिए पापा सागर 3 – 4 दिन पहले आ गए थें | अतः 26 जनवरी को पापा मुझे लेने रहली आ गये | हम शाम 6 – 7 बजे के बीच टीकमगढ़ पहुँचे | बस स्टैंड पर राजाराम चपरासी हमें लेने आया | बड़ा देख – देख कर खुश हो रहा था | उसका इतना खुश होना मैं समझ नहीं पा रही थी | पहले कोई phone तो थे नहीं की घर का पता चलें की कौन आया – गया हैं | Officers – Quarter लक्कड़ खाने में थें | Campus के main gate पर जैसे पहुँचे हमारा बंगला बिल्कुल सामने था | gate से हमारा Drawing Room दिखता था | यदि हमारे आँगन का सामने वाला दरवाजा खुला हो तो हम लोगो के आने की वजह से दरवाजा खुला हुआ था | मैं बड़े ही तेज – तेज कदमो से घर की तरफ जा रही थी | मैं बहुत समय बाद सबसे मिल रही थीं | इतना समय मैं पहली बार सबसे दूर रही | और जैसे ही मेरी नजर Drawing Room के सोफे पर पड़ी कोई अनजाना लड़का मम्मी का सफेद शॉल ओढ़े बैठा था | कड़ाके की ठंड तो थी ही | To be continued…..

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