कॉलेज के वो मस्ती भरे प्यारे दिन
college के उन दिनों की यादें चेहरे पर हँसी और गुस्से को एक साथ ले आती हैं |
तो शुरू करते है कॉलेज का सफर-
11th करके college में 1year में admission लिया |
1978 में पापा जी की Posting DHAR (M.P)में employment – officer की थीं | इसलिए DHAR में ही मेरा college जाना शुरू हुआ |

मेरा college घर से 7km दूर था cycle से जाया करती | मुझे आज भी याद है | college का वो पहला दिन जब मै डरी – सहमी सी गई थी | सब कुछ अलग अनुभव लिए | उस समय girls कम ही जाया करती थी | मेरी class में 40 लड़को में हम 13 girls थी |पूरेे College में Boys ही ज्यादा थे | हम लोग जैसे ही cycle से उतरते Senior एक स्वर में रास्ते के दोनों तरफ खड़े left- right – left जोर – जोर से बोलते थे | और ना चाहतें हुए भी हमारी चाल सैनिको जैसी हो जाती | senior junior की ragging भी बहुत लिया करते थे | लड़कियों को भी रोक कर परेशान करते पर मुझे कभी नहीं रोका जैसे ही बुलाते पता चलता कि ये तो employment – officer की बेटी हैं | sorry कह कर जाने देते उन्हें पता था की पापा के office में नौकरी के लिए नाम लिखवाने तो जाना ही पड़ेगा ।
अब CLASS में पहुँचते ही आगे की दो Row में हम सभी लड़कियाँ फटाफट कब्जा कर लेते ताकि कोई लड़का हमारी बैंच में ना बैठ पाये क्योकि पीछे बैठना यानि लड़कों की छेड़खानी सहना |
हम लोंगो की science class थी | पर हमको maths पढ़ने के लिए लड़कों की maths class में जाना होता था |
हम पहले दिन class में पहुँचे तो क्या शोर -शराबा हुआ कि परेशान हो गये | वहाँ बहुत छोटी – छोटी बैंचे थी जिन पर बामुश्किल 3 student ही बैठ पाते थें | हम लोग 5 लड़कियाँ थी इनमे से बारी – बारी 2 benches में हम 3 – 2 करके बैठते | पीछे बेंच पर जो बैठता उसकी आफत आ जाती क्योंकि लड़के पीछे से ink छिड़क देते , मरी छिपकली, मेढ़क फेंक देते और ढेरों बदमाशियाँ| सर को भी ढ़ग से पढ़ाने नहीं देते | उनकी खिल्ली उड़ाया करते | बोर्ड पर अपनी चित्रकारी का नमूना तो रोज ही पेश करते हँसी तो आती थी गुस्सा भी बहुत की इनकी वजह से पढ़ाई होती ही नहीं थी क्यों की teachar भी class में period लेने बहुत कम आते | और अब तो 15 दिन में ही हम लोग पस्त पड़ गये| हारकर principle से शिकायत करके हम लोग वापिस हमारी class में आ गये | तभी सुकून मिला अब maths student हमारी class में आने लगे थे | यहाँ भी उनकी मस्ती बरकरार थी यहाँ तो और लड़को का साथ मिल जाता था तौबा- तौबा ये सभी बहुत ही बद्तमीज और नालायक थे | और थोड़े समय बाद लड़को ने लड़कियों को परेशान करने का नया तरीका निकाल लिया था |

साइकिलें पंचर करने लग गयें | रोज ही 4 -5 girls की साइकिल पंचर करने का नियम बना लिया था | हमें परेशान होता देख पास आकर बड़े भोलेपन से बोलते कि लाओ हम लोग साइकिल ले चलते हैं । गुस्से से हम तमतमा जाते पर मन मसोस कर रह जाते और अपनी – अपनी साइकिले घसीटते – 2 5km. पैदल चलते -चलते बेहद थक जाते और रोना- रोना आ जाता | City आने पर चौराहे पर पंचर ठीक करवाते तब घर जा पाते जब – जब मेरे साथ ऐसा होता घर आते -आते बुरी तरह से थककर चूर हो जाती और रोने लगती और मम्मी से कहती की मुझे नहीं जाना पढ़ने |
तब मम्मी समझाती बेटा ऐसे थोड़ी हार मानते है | और वे मेरे पैरों की malish करती | और मुझे आपने हाथ से खाना खिलाती | उस समय में बहुत दुबली -पतली नाजुक सी थी | इसी प्रकार पहला साल निकल गया | अब II year में पहुँचे गये थे | दूसरे साल mid session में हम लड़कियों ने एक plan बनाया लड़को को मज़ा चखाने का …….
to be continued
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