तुम्हारी हंसी ने मानस में
हंसी बिखेर दी। मन न जाने
कौन से रंगीन ताने - बाने बुन्ने
में तल्लीन हो गया। कभी - 2 स्मृति
जाग उठती है और तुम्हारी थिरकती
मुस्कान अठखेलियाँ करती, दिल को
कचोटती हुई न जाने कहाँ पंख लगाए
उड़ जाती है, तितलियों सी। तुम भी हो
तितलियों सी चंचला , रंगीन हो ( तुम्हारा
रूप मोहक, स्वर मोहक और चितवन मोहक)
कल्पना की संहचरी मादक पलकों में बैठकर
न जाने कौन सी मादक भाव में तुमने संदेश
सुनाया। आकुल ब्याकुल प्राण पंख पसारे ढूंढ रहे
तुम्हे, किन्तु पा ना सके तुम्हारी छाया भी। किस
माया के आवरण में छिप कर आँख मिचौली
खेल रही हो ? कुछ तो बोलो चंद्रा|