तुम्हारी याद में
तुम्हारी याद में
साथी ! तुम आये और चले गए
किन्तु निशानी रह गई |
सोचा था एक दिन मंजिल पार हो ही जायेगी लेकिन ये अरमान राख हो गए |
कहते तो हैं ” ये जिंदगी एक दिन खाक में मिल जायेगी | “पर मैंने कहा था न कि” राख बनकर भी (जिंदगी) निशानी रह जायेगी”
साथी ! तुम आये और चले गए किन्तु निशानी रह गई |
परशुराम
- Categories:
- स्मृतियाँ