तुम्हे मेरे पास बैठकर पीड़ित मानस को सांत्वना
तुम्हे मेरे पास बैठकर पीड़ित मानस को सांत्वना देने में भी ग्लानि हो तो फिर तुम्हारे समित्य की कल्पना ही क्यों
? जब मानस में गहरी बेदना और व्यथा का ज्वार उमड़ पड़ता है, तब तुम्हारा शीतल स्पर्श सान्तवना और धैर्य देता है | पर तुम्हे मैंने जब जब भी याद किया और पुकारा तुमने सुनी अनसुनी की और मैं तरसता रहा | आज भी तुम मेरे सामने हो ,मेरी पीड़ा और मेरी वेदना को देखते भी चुप खड़ी हो ,मुस्करा रही हों |
बेदर्दी सान्तवना नहीं दे सकती तो न सही किन्तु वो मुस्कुराहट के व्यंग वीरो से ह्रदय को छलनी तो बनाओ
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