प्रतीक्षा में पलकें बिछी
प्रतीक्षा में पलकें बिछी की बिछी रहीं किन्तु तुम आयीं नहीं | आँखे थक कर कुछ झपकी कि तुम्हारीआहट ज्ञात हुई और देखा किन्तु तुम नहीं | एक ही बार नहीं कई बार भ्रम ने चौका दिया , किन्तु निर्मम तुम आयी नहीं जब आशा निराशा में बदल गयी तब तुम आयी पलभर खड़ी रही और जाने लगी | मैंने तुम्हारी कितनी आरजू , कितनी मिन्नतें की पर रुकी नहीं। दिल को चूर -चूर कर आखिर चली ही गई ‘ | तुम आओगी …और फिर आओगी निर्मम ,,| एक पल जलाकर चले जाने को , किन्तु प्रतिक्षा में पलके बिछी की बिछी रही ‘|
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