भूली – बिसरी यादें
हमारी बेटी के जाने के दिन बिल्कुल दरवाजे पर खड़े है | यादो का झरोखा खोलू तो यादों का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है
जब हमारी बेटी का जन्म हुआ था | जन्म से लेकर आज तक का सफर जैसे सब आज ही घटित हुआ है | बिटिया का जन्म 1987 में गाड़रवार में हुआ | उस समय हम डागा कालोनी में थे | जन्म से ही गोल मटोल फुग्गे जैसे गालो वाली बेहद आकर्षित करने वाली गुड़िया थी, पर बहुत रोती थी | इसी से जुडी एक घटना का जिक्र जरूर करूँगी जो मुझे जब तब याद आ जाती है |
याद आने पर दुःख भी होता है | पर जब आप परेशान होते हो , तब कुछ भी याद नहीं रहता | हुआ यूं October में शरद पूर्णिमा आई | तब डोना 4 -5 Month की थी उस दिन मेरा Fast था | दो Sएरंड्ज़ शाम 5 बजे तक रहते थे उनमे से तारा को मैंने रोक लिया की तुम थोड़ी देर से चले जाना , क्योकि डोना रोये जा रही थी और चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी | मुझे पूजा करने

के पहले नहाने जाना था | अतः उसे मै अपने साथ bathroom ले गई और एक तरफ अच्छे से गद्दी में लपेट कर लिटा दिया की उसे पानी ना लगें | पर उसका रोना लगतार चल रहा था | और जब मेरे सब्र का बाँध टूटा मैंने उसके ऊपर एक बाल्टी ठंडे पानी की फेंक दी | पानी पड़ते ही एक दम सन्नाटा छा गया | और अब डरने की बारी मेरी थी | उसे ऐसा चुप देखकर मेरे हाथ – पैर डर से काँपने लगे थे | मैंने दौड़ कर उसे उठा कर सीने से चिपका लिया और रोने लगी थी | उसके बाद वो आराम से दूध पीकर सो गई | और वो धीरे -धीरे बड़ी होने लगी | रोना उसका जैसे जन्म सिद्ध अधिकार था और भूख लगने पर तो कहना ही क्या

आसमान सिर पर उठा लें mother feed ना मिलने की वजह से ऊपर का दूध पिलाना पड़ा था | अतः दूध गर्म होगा जो कभी ज्यादा भी गर्म हो जाया करता था तो भाई उसे ठंडा भी तो करना पड़ेगा | और इसी वजह से servants को भी हमेशा डाट पड़ जाती थी | ऐसे ही डोना जब 9 -10 month की होगी | इसका रोना सुन – सुनकर मैं खुद भी परेशान होकर रोने लगती थी | और एक दिन ज्यादा ही परेशान हो गई थी | वंगारु भी चाहे कितना भी खिलौने से खिलाए पर थोड़ी देर में ज्यो की त्यों | उस दिन

छुक्को के पापा office से आये रात के 9 बज चुके थे | वंगारु सो चुका था | और रानी बेटी तो रो ही रही थी | थोड़ी देर तो इन्होने सुना फिर गुस्से से बोले इसे बाहर ले जाओ इस पर मैंने गुस्से में कहाँ मैं तो दिनभर में दुखी हो गई हूँ इससे पर इनका इतना कहना था की मेरे गुस्से की सीमा खत्म हो गई और मैंने डोना को एक हाथ से उठाया और कमरे से बाहर चली गई यह कहते हुए की इसको आज में ऊपर से फेंक ही देती हूँ | फिर किस्सा ख़त्म उस समय हमारा घर upper floor पर था | मैं तेजी से छत

की मुंडेर की तरफ जा रही थी | तभी इसके पापा दौड़ते हुए आए और प्यारी सी डोना को मुझसे छीनकर अपने सीने से लगा लिया और बोले तुम ये क्या करने जा रही हो , तुम सनकी तो हो पता नहीं कहीं मेरी बेटी को सच में ही न फेंक दो ‘और बड़े प्यार से हम दोना के सर पे हाथ फेरा | इस बीच डोना बिलकुल चुप होकर हम दोनों को देख रही थी | उसका मासूम सा चेहरा देखकर हम दोनों ही रोने लगे थे | और मुझे समझाने लगे थे की चंद्रा इतना गुस्सा कभी मत करना तुम तो वैसे ही ममता का सागर हो, गुस्से में हम जो कभी सोचते भी नहीं वो हम कर बैठते है | वे जानते थे की मै ऐसा सपने में भी कभी नहीं कर सकती थी | पर गुस्सा तो गुस्सा है ” ऐसे ही डोना 1 Year की हो गई और हमारा Transfur गाडरवार से दमोह में हो गया |
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