9 मई 1984
राजेन्द्र अस्पताल ( शासकीय ) प्रसूति गृह सामान्य वार्ड:- एक अदम्य साहसीय कार्य किए जाने के पूर्व की चुप्पी। सभी शांत किन्तु अंदर से तारों की तरह झंकृत की क्या होने जा रहा है । आँसू बार – बार बहे ,दिल की तपन को कुछ कम शामिल करने के लिए | अपने प्रिय ईश्वर श्री राम को पुकारा मैंने, उन्होंने सुनी भी और मुझे एक लड़के से “दम्पति”तथा उस दम्पति से पिता बना दिया |


उस असीम प्यारी किन्तु विशाल हस्ती का उदय मेरे जीवन में हुआ, जिससे मेरे सितारे बिल्कुल बुलंदी पर पहुंचेंगे , धन्यवाद के अलावा इसको जन्मने वाली हृदया को मै अपना तमाम जीवन ही सौंपता हूँ की तू जब चाहे जैसा मेरा उपयोग कर तेरी समझ ही है कितनी | तुझे कई बार जन्म लेना पड़ेगा मुझे और इस दिल करे समझने के लिए।

स्नेहाशीष
(शुभचिंतको की कलम से )तुम्हें पाने की बेकरारी कुछ इस हद तक बढ़ी थी बेटे, की तुम्हारी माँ को कभी अपनी पत्नी नहीं मान पाया तुम्हारी खोज ही मेरी पूर्ण तृप्ति बनी रहे, आज तुम अब आ गए बेटे हो, मुझे सारे जहां की खुशिया मिल गई है, बस तू आकर खुद महक और हमारे गुलशन की शोभा बना , तुझे हासिल करने के धुन में कुछ दर्द मुझे खुद तेरी जन्मदायनी ने दिए जिन्हें सीने में छुपाए रहा हूँ | पूछूंगा मैं कभी उनसे कि -) क्यों तुम्हारी माँ ने कभी नहीं चाहा कि तुम्हारा जन्म मेरे बिल्कुल करीब हो और मै तुम्हें दिली नजर से न देख सकूँ। )- मैं तुम्हारी आगवानी किसी भी प्रकार के भौतिक सबूतों से न कर सकूँ ताकि समय पर तुम्हें बरगलाया जा सके|)- मुझे साबित किया जा सके कि मै भौतिक संसाधनों में बहुत कमजोर था और आपको ..
फिर भी बेटे मै ही तुम्हें कुछ कम नहीं दूँगा , पिता का स्नेह कितना गहरा होगा अपने बेटे पर मैं खुद तो महसूस नहीं कर सका किन्तु ये वादा है की बेटे तुम्हें पिता से मिलने वाला स्नेह इतना असीम होगा कि माँ की ममता भी लजा जायेगी अपनी औकात पर, मेरे पास बहुत कुछ था बेटे जो तुझे पाने की खुशी में बेरोकटोक लुटाता रहा ,आज जबकि तू मिल गया है सब कुछ थमा-थमा सा लगता है | लो मै प्रथम ही अपनी ओर से तुझे तेरे अच्छे स्वास्थ्य और बहुत ऊँचे भविष्य के लिए मंगल कामना करता हूँ और स्वागत करता हूँ तेरा अपने एकाकी जीवन में की तू आ !और अपने नन्हें हाथों से मेरी वीरान दुनियाँ को फिर हरा भरा कर ताकि बरसों से जलता हुआ मेरा सीना ठंडा हो सके।
तुम्हारा पिता
परशुराम


मेरा प्यारा बेटा तुझे पाकर जैसे मेरे पैर जमीन पर नहीं हैं | तुझसे ही मैंने नारी की पूर्णता “माँ” प्राप्त की हैं
सदा तुम्हारी माँ
जिसे मैं कभी महसूस करके रोमांचित हो जाया करती थीं | मैं सदैव चाहूँगी की तू इस जीवन में कुछ ऐसे काम करें जिससे लोग तुझे जाने | तू सदैव ऊँचाई की बुलंदियों को छूता जायें |
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