ऐसा था मेरा प्यारा बचपन
आज में इतनी बड़ी हो गयी हूँ, कि रानी बेटी कहलाने का हठ स्वपन सा लगता है, बचपन की कथा – कहानियाँ कल्पना जैसी जान पड़ती है |
और खिलौनों के संसार का सौन्दर्य भ्रान्ति हो गया हैं | पर बचपन आज भी सत्य है, और सुन्दर है और स्मरणीय हैं | मेरे अतीत में खड़े बचपन की विशाल छाया वर्तमान के साथ बढ़ती ही जाती हैं |निश्चल, बेबाक, पर स्नेहतरल |
यादो की उड़ान भरकर बचपन में पहुँचना :-

wow ha,ha ha मेरा प्यारा बचपन बेहद मस्त अपने में गुम बेखबर “अलमस्त” |
3rd – 4th class में गुड़ियों से खेलना अष्ट- चंगा पे खेलना | 5th – 6th class में सतोलिया, पंतग उड़ाना,और बेहद गिल्ली डंडा खेलना | हम 8- 10 बच्चों का एक group था | जिसमें मैं सबसे बड़ी थी | जो मैं कहती सभी मेरा कहना मानते थे |
7-8 -9th class में कबड्डी, खो-खो, छुपक- छाई खेलना | जो सभी मस्ती भरे खेल थे !

उस समय मैं लोगों को बहुत चिढ़ाया करती थी | एक बार एक अंकल मेरी शिकायत करने घर तक आ गये थे |
शायद उन्होंने हम सबको घर की तरफ भागते देखा लिया था | हम सभी बच्चे बगीचे में छिप गये थे |
मम्मी को कुछ पता नहीं था | बाद में जो मुझे डॉट पड़ी ओफ ओ | मगर कितने दिन इसका असर रहना था | थोड़े दिन बाद फ़िर से वही मस्ती फिर शुरू |
गर्मी की छुट्टियों में हम चारो भाई – बहिन नानी के घर जाया करते थे |

वहाँ आम के बड़े बगीचे थे | दिनभर आम के पेड़ो पर चढ़कर खेलना साथ ही बड़े – बड़े खेत – खलिहान थे |
हम अधिकतर भूसे के ढेर में छिप जाया करते थे ! दोपहर में कभी – कभी हम रामायण का मंचन भी क़रते थे ।
मेरे चार मामा जी है | इसमें से चंद्रभान और भरत मामा मुझसे 2 -4 साल ही बड़े है | वे हमें बहुत सारे खेल ख़िलातें थे |
पेड़ों में झूले बांध कर उसमें हमें बहुत झुलाया करते थे |
जब हम सुबह खेतो में जाते वहॉ पर पानी से भरे गढ्ढो में कूद – कूद कर बहुत मस्ती करते| पूरे शरीर पर काली मिट्टी का लेप चढ़ जाया करता था | बिल्कुल भूत लगते थे |

मम्मी को बार- बार बुलाने पर बड़ी मुश्किल से वापिस आना | फिर मम्मी का डांट और पिटाई रगड़- रगड़ कर नहाना आज भी याद आता हैं |
मगर हमें कहाँ सुनना था रात को बड़े से आंगन में सभी के पलंग बाहर लगते थे |और हाँ अभी तो रात की मस्ती बाकी थी | एक – दूसरे को बहुत डराया करते थे | भूतों – परियों की कहानियाँ नानी जी से चिपक कर सुनना | फिर पता नहीं कब परियों के देश में पहुँच जाते | सुबह जब जागते थे तब गाय , बैलो की घंटी की आवाज आती थीं | जब वो चारा चरने जंगल जाया करती थीं | ऐसा था मेरा प्यारा बचपन जो आज भी मैं याद करती हूँ तो आँखो में एक चमक आ जाती हैं |
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