” अंतयात्रा “
एक विश्वास हृदय से चिपटा रहें |
तुम अपनी शक्ति से
मेरे अंतर की गहराइओ में बसी सभी दुर्बलताओं को
छिन्न कर डालो, मेरे प्रभु !
संसार में तुमने मुझे जिस घर में रखा हैं |
उस घर में सुख – दुःख भुलाकर मैं रहूँगा |
दया करके तुम अपने हाथों उसका एक द्वार दिन – रात खुला रखना |
मेरे सारे कार्यों और सारी फुरसत में
यह द्वार तुम्हारे प्रवेश के लिए होगा |
हवा उसी द्वार से तुम्हारी चरण – रज लेकर आएगी |
उस द्वार को खोलकर तुम अंदर आओगे |
उसी द्वार को खोलकर मैं बाहर निकलूंगा |
और कोई सुख मुझे मिले या न मिले
किंतु यह एक सुख तुम सिर्फ मेरे लिए रखना |
यह सुख केवल मेरा और तुम्हारा होगा , प्रभु !\
इस सुख के बारे में तुम जाग्रत रहना |
दूसरा कोई सुख इसे ढक न दे |
संसार उसमे धूल न डाल दे
सरे कोलाहल से बचाकर तुम उसे जतन से
अपने अंक में छुपाये रखना |
और सरे सुखो से भले ही झोली भर जाए
इस एक सुख को तो तुम सदा मेरे लिए रखना |
और सब विश्वास टूट पड़े स्वामी !
एक विश्वास की चित्त से जोड़े रखना |
जब भी जो भी अग्नि-दाह मैं सहन करुँ
वह मेरे ह्रदय में तुम्हारा नाम अंकित कर दे
दुःख जब मेरे मर्म को बींधे तब उस पर
तुम्हारे हस्ताक्षर अवश्य रहें |
कठोर वचन चाहे कितना ही आघात करें
उन सारे आघातों में तुम्हारे सुर बजते रहें |
हृदय के अनगिनत विश्वास जब टूट जाए
तब एक विश्वास से ह्रदय चिपटा रहे
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