भूला भटका मन फूलों
भूला भटका मन फूलों
के काटो में ही उलझ कर
रह जाता है क्योकि उसे काटों से
ही प्यार है | सूनी – 2 अंधियारी रातो में
कभी – 2 तुम्हारी याद कुछ ज्यादा ही उभर
आती है तो दिल भर आता है, आँखे भर
आती है | वे हंसती खेलती चाँद तारो की
कक्षाएं विस्मृति की कहानी बनकर कभी – 2 मानस
पट पर उभर आती हैं तो चिंता की घनीभूत रेखाएं
मानस से उभर कर पलकों पर फैल जाती है | किन्तु
अँधेरी रात के आँसू जब प्रकृति के आँगन में बिखर
जाते है, तो हेमाभ रश्मियाँ उन्हें आँचल में बटोर कर फूलों
का मुख धो देती है और फूलो क़ी मुस्कुराहट हेमाभ रशिमयो
के तारों पर थिरक़ उठती है |मंद – मंद बहार महक बिखेर उड़ती हैं
और मादकता से संसार झूम उठता है किन्तु भूला भटका मन
फूलो के काटो में ही उलझकर रह जाता है क्योकि उसे _ _ _ |
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