चितवन
वह न जाने कौन सा अशुभ -शुभ क्षण था जब तुम्हारी चितवन और
मधुर मुस्कान में मेरे तनमन पर अधिकार कर लिया।
मेरी हँसी अपनी न रही और मन अपना न रहा तुम्हारा हो गया।
रात दिन पलकों में तुम्हारी छबि नाचा करती है और मेरे नयन
तुम्हारे रूप सागर में गोते लगाया करते है।
पर देवी !आज तक मेरे ये अधर सुधा -रस के प्यासे है मैं बावरा हूँ।
तुम ही वह जादूगरनी हो जिसने मेरा मन मोह लिया।
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