वियजादशमी
दशहरा अधर्म, अन्याय, असत्य व अत्याचार पर धर्म, न्याय, सत्य और सदाचार की शाश्वत जीत का यह पर्व सभी को अपने अंदर की बुराइयों को त्याग कर मानवता के मार्ग पर चलने की प्रेणना देना हैं |
आज नौ दिन के बाद दोपहर से देवी मूर्ति विसर्जित की जा रही हैं | बड़े अच्छे से ये नौ दिन बीते रोज कहीं ना कहीं झांकी देखने जाते | शाम को मंदिर में कीर्तन होते थे | पता ही नहीं चला नौ दिन कैसे बीत गये | पर आज देवी मूर्ति को जाते देख मन कहीं उदास सा हो जाता हैं | आज शाम को गाड़ियों की पूजा होती हैं | हम सब छोटे थें तो पापा के साथ रावण दहन देखने जाया करते थें | मालवा रीजन में रावण दहन के बाद एक दूसरे को सोन पत्ती देते हैं | और घर घर में तोरई के भजिए बनाये जाते हैं, तथा पान खिलाये जाते हैं | बड़े हर्षो: उल्लास से त्यौहार मनाया जाता हैं | आज सुबह नीलकण्ठ पछी के दर्शन करना शुभ होता हैं |अतः नीलकण्ठ को देख कर, हम लोग एक गीत गाया करते थे :-
” नीलकण्ठ तुम नीले रहियो
दूध भात खाइयो , हमारी किस्सा भगवान से कहियो
सोये हो तो जगा के कहियो
हमारी खुशी में मजा करियों “
पर 2 -3 साल से नीलकंठ को नही देखा | अब धीरे -धीरे सभी पंक्षी विलुप्त हो गए हैं | जंगल तथा गाँव में तो देखने को मिल भी जाते हैं पर शहरो में तो इनको देखना एक सपने सा हो गया है |
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