मेरे बाग को संवारने वाली मालिनी
मेरे बाग को संवारने वाली मालिनी
तेरी सुघड़ता चतुराई की मैं कायल हूँ |
तेरी मुस्कान के गजरे पहन कर मैं निहाल
हो जाती हूँ और तेरी एक नजर पर मेरे पैर
थिरक उठते हैं | तुम्हे क्या दूँ और क्या न दूँ |
सब कुछ देकर भी कुछ न दे सका और तू
रूठ कर चली गई | बाग की श्री गई और
बीराने में धूल हँस रही हैं | मायूस दिल
तुम्हे ढूंढ रहा हैं, किन्तु निर्मम तू न जाने
किस देश में बस गयी हैं |
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