मेरी शादी की 40 वी सालगिरह
15 June 2023
लो आज मेरी शादी की 40 वी सालगिरह आ गई, तुम्हारे बिना मैंने 20 साल गुजार दिए पर दिल से तुम आज भी हर पल मेरे साथ हो ।ऐसा कोई दिन नहीं हुआ की हमने तुम्हें याद ना किया हो ।किसी न किसी रूप में तुम याद आ ही जाते हो|
11 फरवरी 1983 में अपनी सगाई हो गई थी, उसके बाद हमने बहुत समय साथ गुजारा और देखते-देखते 15 June का दिन आ पहुँचा जब तुम बारात लेकर हमारे यहा आए |


सब सपना लग रहा था ।हमारे घर में मेरी पहली शादी थी अतः सभी बड़े पिताजी, ताईजी ,भाई-भाभी, नानी के यहॅा से भी सभी मामा-मामी, बच्चे, आये थे ।घर में पैर रखने की जगह नहीं थी, सभी बारात की तैयारी में लगे है, बारात 8 बजे तक आ गई सभी को जनवासे में रुकवाया गया ।सभी fresh हो कर चाय-नाश्ता ले कर तैयार हो रहे थे ।| यहा मैं भी तैयार हो रही थी ।इसी समय इनकी भाँजिया और बहने मुझे देखने आ गई, एक भांजी ने मेरे पास आकर कान में कहा की मामा जी ने आपको kiss भेजा है, सुनते ही मेरे गाल लाल हो गए और मैं एकदम शर्मा गई थी|

11 बजे बारात आ गई थी द्वारचार के बाद वरमाला हुई इन सब कार्यक्रम में रात 12 बजे गए ।आज वरमाला डालते समय एक नए रूप में तैयार होकर जब आपको देखा तो लगा जैसे एक अलग ही दुनिया में हम एक साथ प्रवेश कर रहे है।photo वगैरा निकालने के बाद dinner किया ।इन ।सबमें रात के 2 बज चुके थे ।


अभी कल की तैयारी भी होनी थीं ।क्योंकि फेरे का समय 9 बजे सुबह का था अतः ऐसे समय नींद कहा आनी थी ।सभी ने समझाया की 2-3 घंटे आराम कर लो नहीं तो कल कोई आराम करने का समय नहीं मिलेगा ।सुबह 5 बजे से फिर तैयार होना है , मम्मी-पापा को कहा आराम था वे तो रात भर सोये भी नहीं ।


16 June 1983
सुबह की लालिमा अम्बर में छाने लगी थी, लगा पूरा वातावरण एक सौन्दर्य और फूलों की मादकता भरी ख़ुशबू से भर उठा हो | मैं सबसे पहले उठ कर नहा धोकर तैयार हो गई, सभी धीरे-धीरे तैयार होकर मंडप में आने लगे थे, 9 बजे पंडित जी ने आकर पूजा की सारी तैयारियाँ शुरू कर दी थी, पहले चढ़ावा चढ़ा, फिर मैं सभी गहने-साड़ी पहन कर तैयार हो कर मंडप में आ गई, आप भी तैयार होकर आ गए थे|


अब सभी रस्मे होने लगी, जब कन्यादान की रस्म हो रही थी तब मैं रोने लगी मैं अपने मम्मी- पापा के चेहरे को देख कर एकदम मायूस हो गई, मैं अपने मम्मी-पापा को कभी भी छोड़कर नहीं जाना चाहती थी ,में हमेशा कहती थी की मुझे शादी नहीं करनी इस पर मम्मी समझाती की बेटा राजाओ ने भी अपनी बेटी को नहीं रखा और ये सदा से ही परंपरा रही है की लड़की को विदा होकर जाना ही है।


अब मम्मी समझाती है कि तुम हम से दूर थोड़ी ही जा रही हो 3-4 घंटे का ही रास्ता है ।इसी वजह से हमने तुम्हारी शादी हैदराबाद नहीं की, तुम्हें हम जल्दी नहीं बुला पायेगे, तुम्हें इतनी दूर बार-बार कौन लेने जाएगा ।मेरा छोटा भाई अभी बहुत छोटा है( मेरा शादी लगभग तय हो गई थी, हैदराबाद में लड़का डॉक्टर था )


अब कन्यादान के बाद पैर पूजने की रस्म हुई, मैं ये सब कुछ बड़ी ही उदास आखों से सिर झुकाए देखी जा रही थी, अब फेरों की बारी थी ।फेरों के समय सब खुशी से गीत गाए जा रहे थे| सभी बहने-भाभी नदियाँ के पार का गाना बहुत सुंदर ढंग से गा रही थी गाने के बोल थे “कौन दिशा में लेके चला रे बटोहियाँ हाँ ठहर -ठहर, ये सुहानी सी डगर ज़रा देखन दे,हाँ देखन दे “। ये गाना नदियाँ के पार का था, जो इस समय Release हुई थी ।

बड़े ही सुंदर ढंग से रस्मे हो गई ।जूता छिपाने की रस्म मे तो बहनों ने जीजा जी को परेशान करना शुरू कर दिया मांग तो बहुत तगड़ी थी अतः जीजा भी बोले इससे अच्छा है की आप लोग मेरे जूते ही रख लो, बड़ी मुश्किल से सभी माने थे | बड़ा हँसी-मजाक चल रहा था, फिर Lunch हुआ सभी कार्यक्रम होते -होते 2 बज गए, अब विदा की तैयारी होने लगी थी और 4 बजे वो दुखद क्षण आ गया ।


6 बजे बाहर जाते समय मेरे पैर नहीं उठ रहे थे, उस समय मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे मेरा सब कुछ खत्म हो गया हो ।घर के सभी लोग रोए जा रहे थे, घर में बड़ा ही दिल को दुःख दने वाला मंजर था, मैं अपने पापा की लाड़ली बेटी पापा से चिपक कर सिसक-सिसक कर रो रही थी तभी इन्होंने पास आकर पापा को चुप कराया तथा अपना रुमाल निकालकर आसू पोंछने लगे, और खुद भी रुआसे हो गए ।बड़ी मुश्किल से मेरी विदा हुई।


7:30 पर हम Buxwaha आ गए,हमारे यहाँ आने के पहले अच्छी-खासी वर्षा हो चुकी थी, अतः आँगन कच्चा होने के कारण कीचड़ हो गया था ।अतः गाड़ी से मुझे गोदी में उतारा गया, इनके मँझले मामा की बड़ी बेटी ने मुझे गोद में लेकर घर के अंदर जाकर उतारा था, बड़ा लाड़-दुलार मिला, घर में एक दम चहल-पहल शुरू हो गई थी ।नई बहु जो आई थी, कुएँ से ठंडा पानी नहाने के लिए रखा गया, बहुत अच्छा लगा ठंडे-ठंडे पानी से नहा कर June की भीषण गर्मी जो थी ।

नहा- धोकर तैयार हुई आज 16 June गुरुवार था अतः, मेरा fast था मैंने सिर्फ नीबू का रस पिया, दिन में मैंने खाना खा लिया था, पर रात को सभी खाना ले आए, मेरे मना करने पर ये भी कहने लगे ठीक है, तुम्हें नहीं खाना तो हम भी नहीं खाएगे, मुझे पता था की दिन भर की भागदौड़ में ठीक से खाना कहा खा पाया होगा। भूख तो जोरों से लगी होगी सभी ने समझाया की ठीक है एक बार में कुछ नहीं होता है, मैंने भी मानकर खाना खा लिया |


अब बाकी की रस्में जो कल सुबह होनी थी ।कथा ,दसमाननी सबके बारे में तैयारी होनी है । मेहमानों का आना-जाना लगा था, हम रात को 3-4 बजे तक बाते करते रहे,सुबह जल्दी ही तैयार होकर पूजा में बैठना है, इस प्रकार ससुराल में मेरा पहला दिन था, अब देखते है ससुराल की परिभाषा कितनी सच है, कैसा रंग- रूप-व्यवहार है, डर तो लगता है, पर साथ अच्छा हो तो आप सब कुछ बड़े प्यार से झेल जाते हो |

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Jindagi ke khubsurat pal……… smriti shesha hai